महायान परंपरा के बुधिष्ठ लोगों ने नए साल के रूप में मनाया लोसर पर्व

 

उत्तरकाशी जिले के डुंडा,बगोरी, हर्षिल में रहने वाले जाड़ जनजाति के समुदाय द्वारा लोसर पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। इनमे अधिकांशत बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं। इस समुदाय मे लोसर पर्व को नए वर्ष के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व तीन रोज तक चलता है। एक स्थान में एकत्र होकर एक तरह से दिवाली की तरह ही यह पर्व मनाया जाता है। इस पर्व में लोग अपने परिवार व संबंधियों से मिलकर लोसर की बधाई देते हैं। इस पर्व पर आटे की होली भी खेली जाती है। पर्व पर प्रत्येक घर मे नए झंडे भी लगाए जाते हैं।
डुंडा के बौद्ध विचारक लक्ष्मण सिंह नेगी ने लोसर पर्व की जानकारी देते हुए बताया कि महायान परंपरा के बुधिष्ठ लोगों का यह विशेष पर्व नए साल के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने बताया कि घर-घर से लकड़ी जिसे स्थानीय भाषा मे छिलका कहते हैं उसे जलाकर रोशनी की जाती है। इस पर्व में हरियाली भी घर-घर मे दी जाती है। इस पर्व को प्राचीन समय से मनाए जाने का वृतांत को लेकर उन्होंने बताया कि आज से करीब दो हजार वर्ष पूर्व तिब्बत में एक बार मंगोल के राजा ने कहा कि जो मुझसे हारेगा वह मेरा अनुयायी बनेगा और यदि वह हारा तो में उसका अनुयायी बनूँगा। तिब्बत में तब तिब्बत के साक्या पंडित द्वारा मंगोल के राजा को हराया गया तब से इस झंडे को विजय पताका के रूप में भी लगाया जाता है। झंडे में जो पंचसील होता है वह बौद्ध अनुयायियों का प्रतीक माना जाता है। उन्होंने बताया कि उत्तरकाशी,चमोली,पिथौरागढ़,
व हिमाचल में बौद्ध अनुयायी इस पर्व को नए साल के रूप में मनाते हैं।

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