19 वीं शताब्दी यानि (1830-1895) के महान अन्वेषक तथा सर्वे आफ इंडिया के सर्वेयर नैन सिंह रावत की प्रपोत्र बहू श्रीमती द्रौपती देवी का गत दिवस पिथौरागढ़ में निधन हो गया। उनके निधन पर शोक व्यक्त कर श्रद्धांजलि दी गई। इनका परिवार मुनस्यारी विकासखंड के ग्राम पंचायत मदकोट में रहता है। वे नैन सिंह के प्रपोत्र मोहन सिंह रावत की धर्म पत्नी थी। श्रीमती द्रौपती देवी ने पण्डित नैन सिंह की विरासत को सजो कर रखने मे अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया । उनका जीवन भी पण्डित नैन सिंह की तरह ही संघर्षपूर्ण रहा। युवा अवस्था मे ही उनके पति मोहन सिंह का देहांत हो गया। अकले ही अपने बल पर अपने पुत्र कुन्दन सिंह रावत को पढ़ा लिखा कर उच शिक्षा दिलाई। लेकिन बेटे-बहू का कुछ सुख मिल पाता उससे पहले श्री कुन्दन सिंह रावत की पत्नी का देहांत हो गया, फिर कुछ सालों बाद श्री कुन्दन सिंह रावत का भी युवा अवस्था मे ही देहांत हो गया। श्री कुन्दन सिंह के तीनों नाबालिग बेटे बिरेन्द्र, मनोज और कवीन्द्र के लालन पोषण की पूरी ज़िम्मेदारी श्रीमती द्रौपती देवी पर आन पड़ी। लेकिन उन्होने बड़ी मेहनत और लगन से तीनों पोतो को पाल-पोष कर बड़ा किया और अपने सबसे बड़े पोते बिरेन्द्र का विवाह भी कराया। किन्तु होनी को कुछ और ही मंजूर था। बेटे-बहू का सुख नहीं मिल पाया, नाती-पोतो का सुख मिल पाता ये भी उनके किस्मत मे नहीं लिखा था।
युवा अवस्था मे ही पहले पोता मनोज का देहांत हो गया, फिर कुछ वर्षों बाद बिरेन्द्र की भी मृत्यु हो गयी । इसके कुछ सालों बाद अंतिम पोता कवीन्द्र का भी देहांत हो गया। परिवार के तीन पीढ़ियों को अपने ही आँखों के सामने गुजरते देखना कितना कष्टकारी हो सकता है, इसकी कल्पना मात्र करने से ही कलेजा फट जाता है। वावजूद इसके आप हमेशा एक संबल बन पण्डित नैन सिंह की विरासत को आगे बढ़ाने का कार्य किया।
वे अपने अंतिम दिनों मे अपने बहू हंसा रावत पत्नी बिरेन्द्र रावत के साथ पिथौरागढ़ मे रह रही थी । अब उनके परिवार मे बिरेन्द्र से एक बेटा और एक बेटी है। दूसरे पोत्र कवीन्द्र से दो बेटे है ।
वर्ष 2023 से मुनस्यारी में पंडित नैन सिंह रावत की जयंती पर उन्हें याद किया जाता है। गौरतलब है कि नैन सिंह रावत (1830-1895) १९वीं शताब्दी के उन व्यक्तियों में से थे जिन्होने अंग्रेजों के लिये हिमालय के क्षेत्रों की खोजबीन की। उन्होने नेपाल से होते हुए तिब्बत तक के व्यापारिक मार्ग का मानचित्रण किया। उन्होने ही सबसे पहले ल्हासा की स्थिति तथा ऊँचाई ज्ञात की और तिब्बत से बहने वाली मुख्य नदी त्सांगपो (Tsangpo) के बहुत बड़े भाग का मानचित्रण भी किया था।
*खबर सार/जगत सिंह मर्तोलिया*