वनाग्नि नियंत्रण को लेकर कई बिंदुओं पर हुई चर्चा,वनों को आग से बचाने के लिये वन पंचायत, युवक व महिला मंगल दलों की भूमिका भी तय होनी चाहिए

 

जिले में वनाग्नि के डाटा एवं केस स्टडी का विश्लेषण करने के साथ ही वनाग्नि और अन्य आपदाओं के सह-संबंध का अध्ययन कर वनाग्नि नियंत्रण और आपदा प्रबंधन के लिए स्थानीय स्तर पर कारगर रणनीति तय की जाएगी। वनाग्नि नियंत्रण के अनुभवों और उपायों पर विचार-मंथन करने के लिए जिलाधिकारी डॉ. मेहरबान सिंह बिष्ट की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में यह निर्णय लेने के साथ ही वनाग्नि के नियंत्रण के लिए फायर लाईनांं के बेहतर रख-रखाव और वनों की आग को फैलने से रोकने के लिए कंट्रोल व काउंटर बर्निंग जैसे उपायों पर अमल किए पर जोर दिया गया। बैठक में वनाग्नि के खतरों की संभावना वाले राजमार्गों व अन्य सड़कों पर अतिरिक्त सतर्कता बरते जाने के साथ ही यात्रियों को सचेत करने के लिए सूचना बोर्ड लगाने एवं अन्य सुरक्षात्मक उपाय करने का भी निर्णय लिया गया। यह भी तय किया गया कि जानमाल की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए वनाग्नि के कारण गिरने की कगार पर पहॅुचे पेड़ों को तुरंत गिराया जाएगा।
वनाग्नि नियंत्रण को लेकर जिला आपदा प्रबंधन केन्द्र में आयोजित बैठक की अध्यक्षता करते हुए जिलाधिकारी डॉ. मेहरबान सिंह बिष्ट ने कहा कि पर्यावरणीय दृष्टि से अत्यंत संवेनशील इस हिमालयी क्षेत्र में वनाग्नि अभिशाप है। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता व पारस्थितिक तंत्र को बचाने के लिए वनाग्नि नियंत्रण के हर संभव उपाय करने होंगे तथा इस मुहिम में स्थानीय समुदाय की अधिकाधिक भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए। जिलाधिकारी ने कहा कि जंगलों की आग के पिछले मामलों के साथ ही आग की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों और वनाग्नि की घटनाओं के डाटा का अध्ययन व विश्लेषण कर जिले की वनाग्नि नियंत्रण की एसओपी तैयार की जानी जरूरी है। वनाग्नि से वन संपदा को क्षति पहॅुचने के साथ ही यह आने वाले मानसून में भूस्खलन, भूक्षरण एवं चट्टानों के टूटने से जनित आपदाओं का प्रमुख कारक भी बनती है। लिहाजा वनाग्नि व आपदाओं के पारस्परिक संबंध को समग्र नजरिए से देखते हुए इसके प्रबंधन के लिए समेकित रणनीति बनाई जानी जरूरी है। जिलाधिकारी ने कहा कि वनाग्नि के नियंत्रण हेतु विभिन्न विभागों के स्तर पर इस बार बेहतर समन्वय देखने को मिला है और सभी संगठन मिलजुलकर वनाग्नि नियंत्रण के लिए त्वरित कार्रवाई कर रहे हैं। वनाग्नि की रोकथाम में अंतर्विभागीय समन्वय व संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल के साथ ही स्थानीय समुदाय की अधिकाधिक भागीदारी व जन-जागरूकता सुनिश्चित कर बेहतर परिणाम हासिल किए जा सकते हैं।
जिलाधिकारी ने कहा कि जंगल की आग सड़कों तक पहॅुचने और पेड़ों के गिरने से जानमाल के नुकसान की घटनाओं को देखते हुए यात्रा मार्गों सहित चीड़ वनों से गुजरने वाली सड़कों पर पर्याप्त सतर्कता व सुरक्षा के प्रबंध किए जाने आवश्यक हैं। यात्रा को सुरक्षित बनाने हेतु सड़कों से लगे वनों के गिरासू पेड़ों को तुरंत सुरक्षित तरीके से अविलंब गिराया जाना भी जरूरी है। इसके लिए जरूरी होने पर आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत आवश्यक आदेश जारी किए जाएंगे। जिलाधिकारी ने कहा कि वनाग्नि नियंत्रण के लिए आवश्यक संसाधनों व धनराशि की कोई कमी नहीं होने दी जाएगी। लिहाजा सभी संबंधित विभाग पूरी तत्परता व प्रतिबद्धता से वनाग्नि की रोकथम में जुटे रहें।
बैठक में पुलिस अधीक्षक अर्पण यदुवंशी ने कहा कि वनाग्नि नियंत्रण में पुलिस विभाग निरंतर अग्रणी भूमिका निभाता रहेगा। उन्होंने जंगलों में आग लगाने के जिम्मेदार लोगों को चिन्हित कर उनके विरूद्ध कड़ी कार्रवाई किए जाने की भी अपेक्षा की।
मुख्य विकास अधिकारी जय किशन ने कहा कि जंगलों को आग से बचाने के लिए वन पंचायतों तथा युवक व महिला मंगल दलों की भूमिका तय की जानी चाहिए।
बैठक का संचालन करते हुए प्रभागीय वनाधिकारी उत्तरकाशी डीपी बलूनी ने वनाग्नि नियंत्रण की कार्ययोजना एवं कार्रवाईयों का ब्यौरा देते हुए बताया कि अत्यधिक गर्मी के कारण पिछले कुछ दिनों में जिले में आग लगने की घटनाओं में वृद्धि देखी गई है। लेकिन अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा जिले में आग लगने की घटनाएं कम हुई हैं। उन्होंने कहा कि सड़कों के निकट खतरे की संभावना वाले जले पेड़ों को चिन्हित करने की कार्रवाई चल रही है और आज से ऐसे पेड़ों को सुरक्षित तरीके से गिराने की प्रक्रिया शुरू की जा रही है। उन्होंने कहा कि वनों की आग को रोकने के लिए वन विभाग को कई बार कंट्रोल बर्निंग या काउंटर फायर की कार्रवाई करनी पड़ती है, लेकिन जानकारी के अभाव में या जानबूझ कर कुछ लोग इसे वनों में आग लगाने के रूप में गलत तरीके से प्रचारित करते हैं। लिहाजा इस प्रक्रिया में को अपनाने में कई बार वनकर्मियों में संकोच देखा गया है। जिसे देखते हुए लोगों को इस बारे में जागरूक करने के साथ ही वनाग्नि नियंत्रण में स्थानीय लोगों की भूमिका को भी बढावा दिया जाना जरूरी है।
श्री बलूनी ने बताया कि जिले में इस बार आरक्षित वनों में वनाग्नि के कुल 72 प्रकरण दर्ज हुए हैं जिसमें 56.14 हेक्टेयर क्षेत्रफल प्रभावित हुआ है। सिविल भूमि में भी वनाग्नि के 62 मामले दर्ज हुए हैं और इनमें 66.53 हेक्टेयर क्षेत्रफल प्रभावित हुआ है। जिले को भारतीय वन सर्वेक्षण से 1768 फायर अलर्ट प्राप्त हुए हैं। वनाग्नि नियंत्रण के लिए जिले के सातों वन प्रभागों में कुल 166 क्रू स्टेशन स्थापित हैं और 550 फायर वाचर तैनात हैं। उन्होंने बताया कि वनाग्नि नियंत्रण की कार्रवाईयों में एसडीआरएफ, एनडीआरएफ, फायर सर्विस, पुलिस, क्यूआरटी, आईटीबीपी, राजस्व विभाग सहित विभिन्न विभागों व संगठनों के द्वारा तत्परता से सहयोग दिया जा रहा है।
बैठक में प्रभागीय वनाधिकारी रविन्द्र पुंडीर, उप निदेशक गंगोत्री नेशनल पार्क आरएन पाण्डेय, उप प्रभागीय वनाधिकारी मयंक गर्ग, जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी देवेन्द्र पटवाल, एसडीआरएफ के निरीक्षक जगदम्बा प्रसाद बिजल्वाण, एनडीआरएफ के निरीक्षक त्रेपन सिंह रावत, अग्निशमन अधिकारी देवेन्द्र सिंह नेगी आदि ने भी अपने विचार रखे। इस विचार मंथन में जिले के सभी वन प्रभागों व रेंजों के अधिकारियों ने भी वर्चुअल माध्यम से भाग लिया।

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