अष्टादश महापुराण का समापन, अंतिम दिन कथा वाचक डॉ. पाराशर महाराज ने भक्तों को सुनाया कृष्ण-सुदामा मिलन का प्रसंग

 

रामलीला मैदान उत्तरकाशी में अष्टादश महापुराण समिति के तत्वावधान में आयोजित श्रीमद्भागवत अष्टोत्तरशत श्रीमद्भागवत महापुराण कथा की समाप्ति के बाद विश्वनाथ मंदिर पूर्णाहुति हवन और भंडारे का आयोजन किया गया। सात दिवसीय अष्टोत्तरशत श्रीमद्भागवत कथा का समापन के अवसर पर भागवत मर्मज्ञ डॉ. श्यामसुंदर पाराशर जी ने सात दिनों का सार बताया व कृष्ण सुदामा मिलन पर कथा में बताया गया कि कैसे गरीब ब्राह्मण सुदामा अपनी पत्नी सुशीला के कहने पर ना चाहते हुए भी द्वारिका जाने को तैयार होते हैं। सुदामा को कृष्ण से मिलने से द्वारपाल रोकता है। सखा कृष्ण सुदामा से मिलने के लिए अपने सिंहासन से उतरकर नंगे पांव दौड़ पड़ते हैं। इसके बाद कृष्ण सुदामा को गले लगाते हैं। सखा सुदामा से बचपन की बातें करते है। हालचाल पूछते है। अंत मे सुदामा के अपने गांव जाने पूर्व श्री कृष्ण कैसे सुदामा के घर को महल में तब्दील कर धन धान्य से भरपूर कर देते हैं। उन्होंने बताया कि जीवन कई योनियों के बाद मिलता है। इसे कैसे जीना चाहिए, यह भी समझाया। सुदामा चरित्र को विस्तार से सुनाया। कृष्ण और सुदामा की निश्छल मित्रता का वर्णन करते हुए बताया कि कैसे बिना याचना के कृष्णा ने गरीब सुदामा का उद्धार किया। मित्रता निभाते हुए सुदामा की स्थिति को सुधारा। अंत आयोजन समिति के पदाधिकारियों एवं अध्यक्ष श्री हरि सिंह राणा ने उत्तरकाशी के जनमानस व कथा में सहयोग करने वाले सभी महानुभावों का आभार व्यक्त किया।

 

 

https://youtu.be/VDFnJuuY4ys

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